आजकल आदतसी हो गयी हैं अन्धेरोंकी, रोशनी से ज्यादा,
अब तो आंसूही बहते है, नदियों से ज्यादा,
सोचा न था के आप तोड़ दोगे अपना वादा,
इसलिए हम मर रहें हैं जीने से ज्यादा...
दम तोड़ रहें हो आप,
साथ छोड़ रहे हो आप,
फिजा भी खिज़ा बनाने लगी हैं,
गुल भी झडने लगे हैं खिलने से ज्यादा...
धरती को सूरज जला रहा है,
अब तो आंसू भी पि रहा है,
हम तड़प रहें हैं प्यास से मगर,
बादल भी गरजते हैं बरसने से ज्यादा....
अब तो आंसूही बहते है, नदियों से ज्यादा,
सोचा न था के आप तोड़ दोगे अपना वादा,
इसलिए हम मर रहें हैं जीने से ज्यादा...
दम तोड़ रहें हो आप,
साथ छोड़ रहे हो आप,
फिजा भी खिज़ा बनाने लगी हैं,
गुल भी झडने लगे हैं खिलने से ज्यादा...
धरती को सूरज जला रहा है,
अब तो आंसू भी पि रहा है,
हम तड़प रहें हैं प्यास से मगर,
बादल भी गरजते हैं बरसने से ज्यादा....